संतान की लंबी आयु की प्राप्ति के लिए माताओं द्वारा किया जाने वाला हल छठ व्रत है। हिंदी पंचांग के अनुसार भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हल छठ व्रत या हरछठ के नाम से जाना जाता है। इसी दिन बलराम जयंती भी मनाई जाती है। इसे हल षष्ठी, पीन्नी छठ, खमर छठ, राधन छठ, चंदन छठ, तिनछठी, तिन्नी छठ या ललही छठ भी कहा जाता हैं।
हल छठ व्रत की पूजा करने से पहले प्रात:काल स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करते है। फिर दीवार पर गोबर से हल छठ चित्र बनाया जाता है। इसमें गणेश-लक्ष्मी, शिव-पार्वती, सूर्य-चंद्रमा, गंगा-जमुना आदि के चित्र भी बनाए जाते हैं। इसके बाद हल छठ के पास कमल के फूल, छूल के पत्ते व हल्दी से रंगा कपड़ा भी रखते है।
फिर गोबर से जमीन को लीपकर एक छोटा सा तालाब बना लें। इसके बाद तालाब में झरबेरी, तास तथा पतास की एक-एक शाखा बांधकर बनाई गई हल छठ में गाड़ दें और उसके बाद इनकी पूजा करें। हल छठ की पूजा में पसाई के चावल, महुआ व दही आदि का प्रसाद चढ़ाया जाता है। इस पूजा में सतनजा यानी कि सात प्रकार का भुना हुआ अनाज भी चढ़ाया जाता है। जिसमें भूने हुए गेहूं, चना, मटर, मक्का, ज्वार, बाजरा, अरहर आदि शामिल होते हैं। इसके बाद हलछठ माता की कथा सुनने का भी विधान है।
इस दिन व्रत के दौरान ऐसा कोई अनाज जिसको हल से जोता गया नहीं खाया जाता है। दांत साफ करने के लिए महुआ की दातुन की जाती है। खाने में अधिकांशतः तालाब में उगने वाली चीजें ही खाई जाती हैं। जैसे तिन्नी का चावल, पसई के चावल, लाल चावल, केर्मुआ का साग आदि। वृक्ष पर लगे हुए खाद्य पदार्थ भी इस दिन खाये जा सकते हैं। हल छठ व्रत में भैंस का दूध, दही और घी का प्रयोग किया जाता है। गाय के किसी भी प्रकार के उत्पाद जैसे दूध, दही, गोबर आदि का उपयोग नहीं किया जाता है।
हल छठ व्रत में महिलायें अपने पुत्रों की दीर्घायु के लिए कामना करती हैं। ऐसी मान्यता है कि हल छठ व्रत करने वाली महिलाओं की मनोकामना भगवान हलधर जरूर पूरी करते हैं। इस दिन पूजन में बच्चों के खिलौने भी रखे जाते हैं।
हल छठ व्रत कथा :
हल छठ व्रत के लिए वैसे तो क्षेत्रीय स्तर पर बहुत सी कथाएं कही जाती हैं लेकिन यह हल छठ व्रत कथा के रूप विशेष रूप से प्रचलित कथा है। हल छठ व्रत कथा के अनुसार, एक ग्वालिन दूध दही बेचकर अपना जीवन व्यतीत करती थी। एक समय वह गर्भवती थी और दूध बेचने के लिए जा रही थी, तभी रास्ते में उसे प्रसव पीड़ा होने लगी। इस पर वह एक पेड़ के नीचे बैठ गई और वहीं पर एक पुत्र को जन्म दिया। दूध खराब होने की चिंता में वह ग्वालिन अपने पुत्र को पेड़ के नीचे सुलाकर पास के गांव में दूध बेचने के लिए चली गई।
उस दिन हल छठ व्रत था और सभी को भैंस का दूध चाहिए था, लेकिन ग्वालिन ने गाय के दूध को भैंस का बताकर सबको दूध बेच दिया। इससे छठ माता को क्रोध आया और उन्होंने ग्वालिन के बेटे के प्राण हर लिए। वह जब लाैटकर आई तो अपने मृत पुत्र को देखकर रोने लगी। फिर अपनी गलती का पश्च्याताप करने के लिए सभी के सामने अपना गुनाह स्वीकार करते हुए पैर पकड़कर माफी मांगी।
जिससे हर छठ माता ने ग्वालिन को माफ़ कर दिया और उसके पुत्र को जीवित कर दिया। इसलिए तभी से ही इस दिन पुत्र की लंबी उम्र हेतु हर छठ का व्रत व पूजन होता है।