बलराम जयंती हर वर्ष भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनायी जाती है। इस दिन बलराम जी का भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई के रुप में जन्म हुआ था। इसलिए इस दिन को बलराम जयंती के रुप में मनाते हैं। भगवान श्रीकृष्ण जी के भाई बलराम जी के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में हल षष्ठी व्रत मनाने की भी परंपरा है।
यह परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है। भगवान बलराम को शेषनाग के अवतार के रूप में पूजा जाता है जो क्षीर सागर में भगवान विष्णु के हमेशा साथ रहने वाली शैया के रूप में जाने जाते हैं। क्योंकि बलराम जी का मुख्य शस्त्र हल और मूसल है। इसलिए उन्हें हलधर भी कहा जाता है और उन्हीं के नाम पर इस पावन पर्व का नाम हल षष्ठी पड़ा है। बलराम जयंती या हल षष्ठी व्रत के दिन हलधर की पूजा की जाती है। खेत में जोती बोई चीजें नहीं खाई जाती है। गाय के दूध-दही का सेवन वर्जित होता है।
इसे ललही छठ भी कहा जाता है। इस दिन मां अपनी संतान के दीर्घायु के लिए व्रत और पूजन करती है। बलराम जयंती के दिन माताओं को महुआ की दातुन और महुआ खाने का भी विधान है।