हरतालिका तीज सुहागिन स्त्रियों का अत्यंत महत्वपूर्ण त्योहार है। इस अवसर पर स्त्रियां अपने पति से अटूट संबंधों के लिये उपवास व पूजा-पाठ करती हैं। सुहाग की जितनी भी चीजें होती हैं उन सभी को नया खरीदने और तीज वाले दिन पहनने की परंपरा है जो युगों-युगों से चली आ रही है। प्रत्येक महिला अपने सामर्थ्य के अनुसार, श्रृंगार का सामान बड़े उत्साह से एकत्रित करती है तथा प्रतीक्षा करती है हरतालिका तीज व्रत की, जो सब व्रतों से कठिन होता है। इसमें व्रत के दौरान पानी पीने की भी सख्त मनाही होती है।
हरतालिका तीज व्रत देवी पार्वती और भगवान शंकर से संबंधित है। इस दिन माता पार्वती व शंकर जी की प्रतिमा मिटटी से बनाई जाती है। उनको सजाकर घर में स्थापित किया जाता है। स्त्रियां खूब सज धजकर सायं के समय इन प्रतिमाओं की पूजा करती हैं। यह व्रत इसलिये किया जाता है ताकि जन्म-जन्मांतर तक पति का साथ बना रहे।
हरतालिका तीज व्रत की कथा इस प्रकार है :-
पार्वती जी हिमवान की कन्या थी। जब वह कुछ बड़ी हुई तो एक दिन भगवान विष्णु ने हिमवान से पार्वती को मांगा। हिमवान अति प्रसन्न हुए। वह बोले कि इससे बढ़कर मेरे लिए क्या बात हो सकती है। हिमवान ने भगवान को वचन दे दिया। जब पार्वती को इस बात का पता चला तो यह बात उनको अच्छी नही लगी। वह अति व्याकुल हो उठीं क्योंकि उन्होंने तन-मन से शंकर भगवान को अपना पति मान लिया था। पार्वती बड़ी चिंतित हुईं और अपने मन की व्यथा अपनी सखियों को सुनाई।
सखियों ने सलाह दी कि क्यों न हम यहां से दूर चली जायें ताकि हमें कोई ढूँढ न सके। यह सोच कर पार्वती जी सखियों के साथ चल दीं और कैलाश पर्वत पर जा पहुंचीं। वहां पर उन्होंने 14 वर्षों तक कठोर तपस्या की। इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शंकर भगवान प्रकट हुए और उन्होंने पार्वती जी को अर्धांगिनी स्वीकार किया।
पार्वती जी ने भगवान शंकर से प्रार्थना की कि प्रभु मुझे कोई उपाय बतायें जिससे मैं सदा सर्वदा आपकी अर्धांगिनी बनी रहूँ। तब भगवान शंकर ने पार्वती जी को इस हरतालिका तीज व्रत का विधान बताया। सबसे पहले वेदी की रचना करें और केले के पत्तों का मंडप बनायें। मंडप को सुगंधित वस्तुओं से पवित्र करें। फिर पुष्पों और धूप दीप से मेरा पूजन करें। फिर नाना प्रकार की मिष्ठान मुझे अर्पण करें।
इस प्रकार जो स्त्रियां अपने पतियों के साथ भक्तिभाव से इस व्रत कथा को सुनती है व नियम पूर्वक व्रत करती हैं, उनके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। साथ ही उनके सात जन्मों तक की मनोकामना पूरी होती है।
भगवान शंकर बोले कि जो देवी इस व्रत को सच्चे मन से करती है वह अपने पति के साथ इस भूलोक पर अनेक भोगों को प्राप्त कर सानंद विहार करती है। इस कथा को सुनने मात्र से एक सौ वार्ष्णेय यज्ञों का फल प्राप्त होता है। कुंवारी लड़कियां भी इस व्रत को कर सकती हैं।
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